Karpuri Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को
भारत रत्न सम्मान देने का एलान किया गया है। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के
मुख्यमंत्री रहे थे।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी
ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर की
पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे
उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक
कहा जाता था।
आइये जानते हैं कर्पूरी ठाकुर के बारे में...
कर्पूरी ठाकुर की जीवनी:
कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें 'जननायक' के उपनाम से भी जाना जाता है, एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, और राजनेता थे, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। उन्होंने बिहार को दो बार मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की और उन्हें लोकप्रियता के कारण 'जननायक' कहा गया। यहां उनकी जीवनी का संक्षेप दिया जा रहा है:
नाम: कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur), जिन्हें 'जननायक' कहा जाता है।
जन्म: 24 जनवरी 1924 - पितौझिया, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश इंडिया
मृत्यु: 17 फरवरी 1988 (64 वर्षीय) - पटना,
बिहार, भारत
राजनीतिक पार्टी: सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति
दल, जनता पार्टी, लोक दल
पति/पत्नी: गायत्री देवी (5 दिसंबर 1905 - 10 मई 2002)
व्यापार: स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, राजनेता
मुख्यमंत्री थे: बिहार के 11वें मुख्यमंत्री
- दो बार
जेल में: आजादी से पहले 2 बार और आजादी के
बाद 18 बार जेल गए।
पुरस्कार: भारत रत्न (2024)
जीवनी: कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, और राजनेता के रूप में अपने आत्मा को समर्पित किया। उन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी समर्पित की और आजादी के संग्राम में भी अपनी भूमिका निभाई।
1952 में वे पहले विधानसभा चुनाव में
जीत हासिल करने में सफल रहे और उसके बाद वे कभी भी चुनावों में हार नहीं माने।
उन्होंने बिहार को सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल के माध्यम से सेवा करते
हुए पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री के रूप में आगे बढ़ाया।
कर्पूरी ठाकुर की एक महत्वपूर्ण पहचान यह रही कि उन्होंने
मुख्यमंत्री बनते हुए बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की पहली राजनीतिक
प्रक्रिया को शुरू किया और उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के लिए उनकी सरकार के
दौरान कई प्रोग्राम शुरू किए। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दो
अलग-अलग कार्यकालों में सेवा की,
पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 त
कर्पूरी ठाकुर ने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर कार्य किया। उनकी नेतृत्व में की गई सरकारें जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए समर्पित थीं। उन्होंने आरक्षण के माध्यम से समाज में समानता को बढ़ावा दिया और गरीबों के हक की रक्षा की।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर, बिहार में हुआ था।
उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी बनने का संकल्प लिया और गांधीवादी आंदोलनों में सक्रिय
भूमिका निभाई। उन्हें देश के स्वतंत्रता संग्राम में 26 महीने तक जेल में रहना
पड़ा।
1952 में विधानसभा चुनाव
जीतने के बाद, उनका
प्रशासनिक योगदान और जनहित में कार्यकर्तृता ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने
बिहार के विकास और सामाजिक समरसता के लिए कई कदम उठाए।
कर्पूरी ठाकुर ने अपने दौरे के
दौरान शिक्षा में सुधार के लिए कई उपायों को अमल में लाया, और उन्होंने बिहार बोर्ड
की मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को हटाया।
कर्पूरी ठाकुर को 2024 में भारत रत्न से
सम्मानित किया गया है, जिससे
उनके योगदान को और भी महत्वपूर्णीयता मिली है। उनके आदर्शों और सेवाभाव की याद आज
भी लोगों के दिलों में है।